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अपनी नज़रें झुका बैठे

बज़्म में रुख़सार से पर्दा क्या हटा बैठे,
हम भी नज़रें उन पर ही जमा बैठे।
धड़कने दिल की और भी बेतहाशा बढ़ गई,
जब वो पास में मेरे ही आ बैठे।।

वो जो देख कर मुझे क्या मुस्कुरा बैठे,
बेताबी मेरे दिल की और भी बड़ा बैठे।
बेख़ौफ़ मेरा हाथ थाम कर अपने हाथों में,
राज़-ए-दिल अपना मुझे वो सुना बैठे।।

फ़क़त हम जो उनसे नज़रें क्या मिला बैठे,
सुकूँ-ए-दिल भी अपना हम गवा बैठे।
इस रोग को ना दवा ना दुआ कोई,
मर्ज़-ए-ला-इलाज़ दिल को लगा बैठे।।

अपनी मोहोब्बत का वो मुझे कलमा पढा बैठे,
तस्बीह में इश्क़-इश्क़ की जाप करा बैठे।
इश्क़ का जादू सर चढ़ गया मेरे यारों,
हम अपने आप को भी उसमे भुला बैठे।।

एक लगन अपने दिल की उनसे लगा बैठे,
उनके हाथों में हम अपनी ज़िंदगी लूटा बैठे।
जब उनको हमने अपने आग़ोश में लिया "निक्क",
वो मारे हया के अपनी नज़रें झुका बैठे।।

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14 Comments

Ajay Tiwari

17-Oct-2022 08:20 AM

Very nice

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nikksinghnikhil

17-Oct-2022 09:40 AM

Thank you

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Raziya bano

17-Oct-2022 07:30 AM

Lajawab

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nikksinghnikhil

17-Oct-2022 09:41 AM

Ji shukriya apka

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बढ़ और बढ़ा होगा,,,, बढ़ना होता है,,,, बड़ा हो गया यानी कि बिग

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nikksinghnikhil

17-Oct-2022 09:42 AM

जी शुक्रिया आपका ग़लती बताने के लिए

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